Sumitranandan Pant
दोस्तो आज की पोस्ट में आप छायावाद के प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) के जीवन परिचय से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य जानेंगे |
सुमित्रानंदन पंत कवि परिचय – Sumitranandan Pant Biography in Hindi
जीवनकाल – 20 मई 1900- 28 दिसम्बर 1977
जन्म–स्थान – ग्राम कौसानी, उत्तराखंड
मृत्यु–स्थान – इलाहाबाद में
अन्य नाम – गुसाई दत्त, रामाणर्यानुज
दर्शन – अरविंद दर्शन

उपाधि –
- प्रकृति के सुकुमार कवि
- छायावाद का प्रतिनिधि कवि – आचार्य शुक्ल
- छायावाद का प्रवर्तक – नंददुलारे वाजपेयी
- छायावाद का विष्णु – कृष्णदेव झारी
- संवेदनशील इंद्रिय बोध का कवि
मूलनाम – गोसाईदत्त Sumitranandan Pant
उपनाम – Sumitranandan Pant
- शब्द शिल्पी
- छायावाद का विष्णु
- प्रकृति का सुकुमार कवि
- नारी मुक्ति का प्रबल समर्थक कवि
- नन्ददुलारे वाजपेयी पन्त को छायावाद का प्रवर्तक मानते है ।
- शुक्ल के अनुसार “छायावाद के प्रतिनिधि कवि”।
- प्रथम रचना – गिरजे का घण्टा(1916)
- अंतिम रचना -लोकायतन (1964)
- प्रथम छायावादी रचना – उच्छवास
- अंतिम छायावादी रचना -गुंजन
- छायावाद का अंत और प्रगतिवाद के उदय वाली रचना – युगांत
- गांधी और मार्क्स से प्रभावित रचना – युगवाणी
- सौन्दर्य बोध की रचना – उतरा
- पन्त एव बच्चन द्वारा मिलकर लिखी रचना – खादी के फूल
- छायावाद का मेनिफेस्टो/घोषणापत्र – पल्लव
- प्रकृति की चित्रशाला- पल्लव
- चिदम्बरा काव्य पर -ज्ञानपीठ पुरस्कार 1968(हिंदी साहित्य का प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला)
- कला और बूढ़ा चाँद –साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960)
- लोकायतन रचना पर – सोवियत लैंड पुरस्कार।
काव्य पंक्तियाँ : Sumitranandan Pant
” खुल गए छंद के बंध, प्रास के रजत पाश।
“”वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा ज्ञान।निकल कर आँखों से चुपचाप,भी होगी कविता अनजान।।
छोड़ द्रुमो की मधु छाया ,तोड़ प्रकृति से भी माया।
सुन्दर ह विहग सुमन सुन्दर ,मानव तुम सबसे सुंदरतम ।
बाले! तेरे बाल–जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
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छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले! तेरे बाल–जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
भूल अभी से इस जग को!
तज कर तरल तरंगों को,
इन्द्रधनुष के रंगों को,
तेरे भ्रू भ्रंगों से कैसे बिधवा दूँ निज मृग सा मन?
भूल अभी से इस जग को!
कोयल का वह कोमल बोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,
कह तब तेरे ही प्रिय स्वर से कैसे भर लूँ, सजनि, श्रवण?
भूल अभी से इस जग को!
ऊषा–सस्मित किसलय–दल,
सुधा–रश्मि से उतरा जल,
ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?
छोड़ द्रुमों की मृदु छाया
सुमित्रानंदन पंत का प्रमुख कथन – Sumitranandan Pant
सुमित्रानंदन पंत के लिए कहे गए कथन : Sumitranandan Pant
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