Sumitranandan Pant Biography in Hindi,सुमित्रानंदन पंत कवि परिचय (1900 – 1977)

Sumitranandan Pant

दोस्तो आज की पोस्ट में आप छायावाद के प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) के जीवन परिचय से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य जानेंगे |

सुमित्रानंदन पंत कवि परिचय – Sumitranandan Pant Biography in Hindi

जीवनकाल  20 मई 1900- 28 दिसम्बर 1977

जन्मस्थान  ग्राम कौसानी, उत्तराखंड

मृत्युस्थान  इलाहाबाद में

अन्य नाम  गुसाई दत्त, रामाणर्यानुज

दर्शन – अरविंद दर्शन

Sumitranandan Pant Biography in Hindi,सुमित्रानंदन पंत कवि परिचय (1900 - 1977)
Sumitranandan Pant Biography in Hindi,सुमित्रानंदन पंत कवि परिचय (1900 – 1977)

उपाधि –

  • प्रकृति के सुकुमार कवि
  • छायावाद का प्रतिनिधि कवि – आचार्य शुक्ल
  • छायावाद का प्रवर्तक – नंददुलारे वाजपेयी
  • छायावाद का विष्णु – कृष्णदेव झारी
  • संवेदनशील इंद्रिय बोध का कवि

मूलनाम – गोसाईदत्त Sumitranandan Pant

उपनाम – Sumitranandan Pant

  • शब्द शिल्पी
  • छायावाद का विष्णु
  • प्रकृति का सुकुमार कवि
  • नारी मुक्ति का प्रबल समर्थक कवि
  • नन्ददुलारे वाजपेयी पन्त को छायावाद का प्रवर्तक मानते है  ।
  • शुक्ल के अनुसार “छायावाद के प्रतिनिधि कवि”।
  • प्रथम रचना – गिरजे का घण्टा(1916)
  • अंतिम रचना -लोकायतन (1964)
  • प्रथम छायावादी रचना – उच्छवास
  • अंतिम छायावादी रचना -गुंजन
  • छायावाद का अंत और प्रगतिवाद के उदय वाली रचना – युगांत
  • गांधी और मार्क्स से प्रभावित रचना – युगवाणी
  • सौन्दर्य बोध की रचना – उतरा
  • पन्त एव बच्चन द्वारा मिलकर लिखी रचना – खादी के फूल
  • छायावाद का मेनिफेस्टो/घोषणापत्र – पल्लव
  • प्रकृति की चित्रशाला- पल्लव
  • चिदम्बरा काव्य पर -ज्ञानपीठ पुरस्कार 1968(हिंदी साहित्य का प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला)
  • कला और बूढ़ा चाँद –साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960)
  • लोकायतन रचना पर – सोवियत लैंड पुरस्कार।

काव्य पंक्तियाँ  : Sumitranandan Pant

खुल गए छंद के बंध, प्रास के रजत पाश।

“”वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा ज्ञान।निकल कर आँखों से चुपचाप,भी होगी कविता अनजान।।

छोड़ द्रुमो की मधु छाया ,तोड़ प्रकृति से भी माया।
सुन्दर विहग सुमन सुन्दर ,मानव तुम सबसे सुंदरतम

बाले! तेरे बालजाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
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छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले! तेरे बालजाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
भूल अभी से इस जग को!
तज कर तरल तरंगों को,
इन्द्रधनुष के रंगों को,
तेरे भ्रू भ्रंगों से कैसे बिधवा दूँ निज मृग सा मन?
भूल अभी से इस जग को!
कोयल का वह कोमल बोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,
कह तब तेरे ही प्रिय स्वर से कैसे भर लूँ, सजनि, श्रवण?
भूल अभी से इस जग को!
ऊषासस्मित किसलयदल,
सुधारश्मि से उतरा जल,
ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहला दूँ जीवन?

छोड़ द्रुमों की मृदु छाया 

सुमित्रानंदन पंत का प्रमुख कथन – Sumitranandan Pant

🔸 पंत जी ने प्रकृति की जादूगरी जिस भाषा में अभिव्यक्त की है उसे उन्होंने चित्रभाषा कहा।

🔹 पंतजी – हमें भाषा नहीं, राष्ट्र भाषा की आवश्यकता है, पुस्तकों की नहीं, मनुष्यों की भाषा, जिसमें हँसते-रोते, खेलते-कूदते, लङते, गले मिलते, साँस लेते और रहते हैं, जो हमारे देश की मानसिक दशा का मुख दिखलाने के लिए आदर्श हो सके।

सुमित्रानंदन पंत के लिए कहे गए कथन : Sumitranandan Pant

🔸 रामचंद्र शुक्ल – यदि छायावाद के नाम से एक वाद न चल गया होता तो पंत जो स्वच्छंदता के शुद्ध स्वाभाविक मार्ग पर ही चलते।

🔹 रामचंद्र शुक्ल – पंत जी ही रहस्य भावना स्वाभाविक है, सांप्रदायिक नहीं।

🔸 रामचंद्र शुक्ल – छायावाद के भीतर माने जाने वाले सब कवियों में प्रकृति के साथ सीधा प्रेम संबंध पंत जी का ही दिखाई पङता है। प्रकृति के अत्यंत रमणीय खंड के बीच उनके हृदय ने रुपरंग पकङा है।

🔹 रामचंद्र शुक्ल – ’कलावाद’ के प्रभाव से जिस सौंदर्यवाद का चलन यूरोप के काव्य क्षेत्र के भीतर हुआ उसका पंत जी पर पूरा प्रभाव रहा है।

🔸 डाॅ. नगेन्द्र – पंत की सौन्दर्य भावना और कल्पना का प्रसार प्रकृति और जीवन के सुकुमार रुपों की ओर ही अधिक रहा है।

🔹 पंत जी – मैं कल्पना के सत्य को सबसे बङा सत्य मानता हूँ।….. मेरी कल्पना को जिन-जिन विचारधाराओं से प्रेरणा मिली है, उन सबका समीकरण करने की मैंने चेष्टा की।

🔸 पंत जी – लेखक की कृतियों में विचार साम्य के बदले उसके मानसिक विकास की दिशा को अधिक महत्त्व देना चाहिए, क्योंकि लेखक एक सजीव अस्तित्व या चेतना है और वह भिन्न-भिन्न समय पर अपने युग के स्पर्शों तथा संवेदनाओं से आंदोलित होता रहता है।

🔹 पंत जी – प्रकृति के साहचर्य ने जहाँ एक ओर मुझे सौंदर्य, स्वप्न और कल्पनाजीवी बनाया, वहाँ दूसरी ओर जनभीरु भी बना दिया।

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