Tulsidas Biography In Hindi ,तुलसीदास का जीवन परिचय(1532 – 1623)

तुलसीदास का जीवन परिचय

दोस्तों आज की पोस्ट में भक्तिकाल के चर्चित कवि तुलसीदास के जीवन परिचय(Tulsidas ka Jeevan Parichay), Tulsidas ka jivan parichay,Tulsidas in hindi,Tulsidas Biography in hindi – के बारे में पढेंगे । इनसे जुड़े परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण तथ्य जानेंगे और कुछ ट्रिक भी पढेंगे ,अगर फिर भी कोई जानकारी छूट जाएँ, तो नीचे कमेंट बॉक्स में जरुर देवें ताकि हर हिंदी मित्र को इसका प्रतियोगिता परीक्षा में फायदा मिले ।

तुलसीदास का सम्पूर्ण परिचय – Tulsidas ka Jivan Parichay

  • जन्म-मृत्यु – 1532-1623 ई.
  • पिता – आत्माराम दूबे
  • माता – हुलसी
  • पत्नी – रत्नावली
  • दीक्षा गुरु – नरहर्यानन्द
  • शिक्षा गुरु – शेष सनातन

तुलसीदास के जन्म स्थान के विषय में मतभेद है, जो निम्न हैं

⇒ लाला सीताराम, गौरीशंकर द्विवेदी, हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामनरेश त्रिपाठी, रामदत्त भारद्वाज, गणपतिचन्द्र गुप्त के अनुसार – तुलसीदास का जन्म स्थान – सूकर खेत (सोरों) (जिला एटा)

⇔ बेनीमाधव दास, महात्मा रघुवर दास, शिव सिंह सेंगर, रामगुलाम द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार तुलसीदास का जन्म स्थान – राजापुर (जिला बाँदा)

⇒ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल तुलसीदास को ’स्मार्त वैष्णव’ मानते हैं।

⇔ आचार्य शुक्ल के अनुसार ’हिन्दी काव्य की प्रौढ़ता के युग का आरम्भ’ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा हुआ।

⇒ Tulsidas के महत्त्व के सन्दर्भ में विद्वानों की कही गई उक्तियाँ निम्न हैं –

Tulsidas Biography In Hindi  ,तुलसीदास का जीवन परिचय(1532 - 1623)
Tulsidas Biography In Hindi ,तुलसीदास का जीवन परिचय(1532 – 1623)
विद्वानप्रमुख कथन
नाभादासकलिकाल का वाल्मीकि
स्मिथमुगलकाल का सबसे महान व्यक्ति
ग्रियर्सनबुद्धदेव के बाद सबसे बङा लोक-नायक
मधुसूदन सरस्वती आनन्दकानने कश्चिज्जङगमस्तुलसी तरुः।
कवितामंजरी यस्य रामभ्रमर भूषिता।।
रामचन्द्र शुक्ल‘‘इनकी वाणी की पहुँच मनुष्य के सारे भावों व्यवहारों तक है।
एक ओर तो वह व्यक्तिगत साधना के मार्ग में विरागपूर्ण शुद्ध भगवदभजन का उपदेश करती है दूसरी ओर लोक पक्ष में आकर पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्यों का सौन्दर्य दिखाकर मुग्ध करती है।’’
रामचन्द्र शुक्ल

यह एक कवि ही हिन्दी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।
रामचन्द्र शुक्लतुलसीदासजी उत्तरी भारत की समग्र जनता के हृदय   मन्दिर में पूर्ण प्रेम-प्रतिष्ठा के साथ विराज रहे हैं।
हजारीप्रसाद द्विवेदीभारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय   करने का अपार धैर्य लेकर आया हो।
रामविलास शर्माजातीय कवि
अमृतलाल नागरमानस का हंस।

⇒ गोस्वमी तुलसीदास रामानुजाचार्य के ’श्री सम्प्रदाय’ और विशिष्टाद्वैतवाद से प्रभावित थे। इनकी भक्ति भावना ’दास्य भाव’ की थी।

⇒ गोस्वामी तुलसीदास की गुरु परम्परा का क्रम इस प्रकार हैं – Tulsidas

राघवानन्द⇒रामानन्द⇒अनन्तानन्द⇒नरहर्यानंद (नरहरिदास)⇒तुलसीदास

⇒ तुलसीदास का विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ।

⇒ एक बार तुलसीदास की अनुपस्थिति में जब रत्नावली अपने भाई के साथ अपने पीहर चली गई तो तुलसी भी उनके पीछे-पीछे पहुँच गए वहाँ रत्नावली ने उनको बुरी तरह फटकारा।

रत्नावली की फटकार दो दोहों में प्रसिद्ध है – Tulsidas

’’लाज न लागत आपको दौरे आयहु साथ।
धिक धिक ऐसे प्रेम को कहा कहौं मैं नाथ।।
अस्थि चर्म मय देह मम तामे जैसी प्रीति।
तैसी जौ श्री राम महँ होति न तौ भवभीति।।’’

विशेष (Tulsidas ka Jivan Parichay)

रत्नावली की इस फटकार ने तुलसी को सन्यासी बना दिया।

⇒ गोस्वामी तुलसीदास के स्नेही मित्रों में नवाब अब्दुर्रहीम खानखाना, महाराज मानसिंह, नाभादास, मधुसूदन सरस्वती और टोडरमल का नाम प्रसिद्ध है।

⇒ टोडरमल की मृत्यु पर तुलसीदास(Tulsidas) ने कई दोहे लिखे थे जो निम्न हैं –

’’चार गाँव को ठाकुरो मन को महामहीप।
तुलसी या कलिकाल में अथए टोडर दीप।।
रामधाम टोडर गए, तुलसी भए असोच।
जियबी गीत पुनीत बिनु, यहै जानि संकोच।।’’

⇒ रहीमदास ने तुलसी के सन्दर्भ में निम्न दोहा लिखा है –

सुरतिय, नरतिय, नागतिय, सब चाहति अस होय। तुलसीदास

गोद लिए हुलसी फिरैं, तुलसी सो सुत होय।। रहीमदास

⇔ गोस्वामी तुलसीकृत 12 ग्रन्थों को ही प्रामाणिक माना जाता है। इसमें 5 बङे और 7 छोटे हैं।

 तुलसी की पाँच लघु कृतियों  ’वैराग्य संदीपनी’, ’रामलला नहछू’, ’जानकी मंगल’, ’पार्वती मंगल’ और ’बरवै रामायण’ को पंचरत्न कहा जाता है।

⇔ कृष्णदत्त मिश्र ने अपनी पुस्तक गौतम चन्द्रिका में तुलसीदास की रचनाओं के अष्टांगयोग का उल्लेख किया है।

ये आठ अंग निम्न हैं

(1) रामगीतावली
(2) पदावली
(3) कृष्ण गीतावली
(4) बरवै
(5) दोहावली
(6) सुगुनमाला
(7) कवितावली
(8) सोहिलोमंगल

⇒ तुलसीदास की प्रथम रचना वैराग्य संदीपनी तथा अन्तिम रचना ’कवितावली को माना जाता है। ’कवितावली’ के परिशिष्ट में ’हनुग्गनबाहुक’ भी संलग्न है। किन्तु अधिकांश विद्वान रामलला नहछू को प्रथम कृति मानते हैं।

गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं का संक्षिप्त परिचय निम्न हैं

ट्रिकः  जिन रचनाओं में राम व मंगल शब्द आते है वे अवधी में है शेष ब्रजभाषा में है।

अवधी भाषा में रचित (Tulsi das in hindi)

1. 1574 ई.रामचरित मानस(सात काण्ड)
2. 1586 ई.पार्वती मंगल164 हरिगीतिका छन्द
3. 1586 ई.जानकी मंगल216 छन्द
4. 1586 ई.रामलला नहछु20 सोहर छन्द
5. 1612 ई.बरवै रामायण69 बरवै छन्द
6. 1612 ई.

रामाज्ञा प्रश्नावली49-49 दोहों के सात सर्ग

 ब्रज भाषा में रचित (Tulsidas Biography in Hindi)

1. 1578 ईगीतावली330 छन्द
2. 1583 ई.दोहावली573 दोहे
3. 1583 ई.विनय पत्रिका276 पद
4. 1589 ई.कृष्ण गीतावली61 पद
5. 1612 ई.कवितावली335 छन्द
6. 1612 ई.वैराग्य संदीपनी62 छन्द

⇒ रामचरितमानस की रचना संवत् 1631 में चैत्र शुक्ल रामनवमी (मंगलवार) को हुआ। इसकी रचना में कुल 2 वर्ष 7 महीने 26 दिन लगे।

⇔ रामाज्ञा प्रश्न एक ज्योतिष ग्रन्थ है।

⇒ कृष्ण गीतावली में गोस्वामीजी ने कृष्ण से सम्बन्धी पदों की रचना की तथा पार्वती मंगल में पार्वती और शिव के विवाह का वर्णन किया।

⇔ ’रामचरितमानस’ और ’कवितावली’ में गोस्वामी जी ने कलिकाल का वर्णन किया है।

⇒ ’कवितावली’ में बनारस (काशी) के तत्कालीन समय में फैले ’महामारी’ का वर्णन उत्तराकाण्ड में किया गया है।

⇔ तुलसीदास ने अपने बाहु रोग से मुक्ति के लिए हनुमानबाहुक की रचना की।

⇒ ‘‘बरवै रामायण’’ की रचना रहीम के आग्रह पर की थी।

⇔ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ’रामचरितमानस’ को लोकमंगल की साधनावस्था का काव्य माना है।

 ’मानसमें सात काण्ड या सोपान हैं जो क्रमशः इस प्रकार हैं

  1. बालकाण्ड
  2. अयोध्याकाण्ड
  3. अरण्यकाण्ड
  4. किष्किन्धाकाण्ड
  5. सुन्दरकाण्ड
  6. लंकाकाण्ड
  7. उत्तरकाण्ड

⇒ अयोध्याकाण्ड को ’रामचरितमानस’ का हृदयस्थल कहा जाता है। इस काण्ड की चित्रकूट सभा को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने एक आध्यात्मिक घटना की संज्ञा प्रदान की।

⇔ चित्रकूट सभा में ’वेदनीति’, ’लोकनीति’ एवं ’राजनीति’ तीनों का समन्वय दिखाई देता है।

⇒ ’रामचरितमानस’ की रचना गोस्वामीजी ने ’स्वान्तः सुखाय’ के साथ-साथ ’लोकहित’ एवं ’लोकमंगल’ के लिए किया है।

रामचरितमानसके मार्मिक स्थल निम्नलिखित हैं

  • राम का अयोध्या त्याग और पथिक के रूप में वन गमन,
  • चित्रकूट में राम और भरत का मिलन,
  • शबरी का आतिथ्य,
  • लक्ष्मण को शक्ति लगने पर राम का विलाप,
  • भरत की प्रतीक्षा आदि।

⇒ तुलसी ने ’रामचरितमानस’ की कल्पना ’मानसरोवर’ के रूपक के रूप में की है। जिसमें 7 काण्ड के रूप में सात सोपान तथा चार वक्ता के रूप में चार घाट हैं।

⇔ तुलसीदास को ’लाला भगवानदीन और बच्चन सिंह’ ने रूपकों का बादशाह’ कहा है।

⇒ तुलसीदास को ’आचार्य रामचन्द्र शुक्ल’ ने अनुप्रास का बादशाह कहा है।

⇔ तुलसीदास को ’डाॅ. उदयभानु सिंह’ ने उत्प्रेक्षाओं का बादशाह कहा है।

⇒ आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है, ’’तुलसी का सम्पूर्ण काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।’’

⇔ ’रामचरितमानस’ पर सर्वाधिक प्रभाव अध्यात्म रामायण का पङा है।

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⇒ तुलसीदास ने सर्वप्रथम मानस को को सुनाया था।

⇒ ’रामचरितमानस’ की प्रथम टीका अयोध्या के बाबा रामचरणदास ने लिखी।

⇔ ’रामचरितमानस’ के सन्दर्भ में रहीमदास ने लिखा है –

रामचरित मानस विमल, सन्तन जीवन प्रान।
हिन्दुवान को वेद सम, यवनहि प्रकट कुरान।।

⇒ भिखारीदास ने तुलसी के सम्बन्ध में लिखा हैं –

तुलसी गंग दुवौ भए सुकविन के सरदार।
इनके काव्यन में मिली भाषा विविध प्रकार।।

⇒ अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध ने इनके सम्बन्ध में लिखा हैं –

’कविता करके तुलसी न लसे, कविता पा लसी तुलसी की कला’

⇔ आचार्य शुक्ल ने तुलसी के साहित्य को विरुद्धों का सांमजस्य कहा है।

⇒ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार –
’’तुलसीदास जी रामानंद सम्प्रदाय की वैरागी परम्परा में नही जान पङते। रामानंद की परम्परा में सम्मिलित करने के लिए उन्हें नरहरिदास का शिष्य बताकर जो परम्परा मिलाई गई है वह कल्पित प्रतीत होती है।’’

⇔ बाबू गुलाबराय ने तुलसीदास को सुमेरू कवि गोस्वामी तुलसीदास कहा है।

⇒ बाबू गुलाबराय के अनुसार – तुलसीदास को विश्वविश्रुत माना जाता है।

Tulsidas ka jeevan parichay

तुलसीदास के बारे में महत्त्पूर्ण कथन-

रामचंद्र शुक्ल –भारतीय भक्ति मार्ग सरलता और स्पष्टता का पक्षधर है क्योंकि उसके अनुसार भक्ति का संबंध भावना से है, कठिन योग साधना से नहीं।

रामचंद्र शुक्ल – भक्ति रस का पूर्ण परिपाक जैसा विनयपत्रिका में देखा जा सकता है, वैसा अन्यत्र नहीं। भक्ति में प्रेम के अतिरिक्त आलंबन के महत्त्व और अपने दैन्य का अनुभव परमावश्यक अंग है। तुलसी के हृदय से इन दोनों अनुभवों के ऐसे निर्मल शब्द स्रोत निकले हैं, जिसमें अवगाहन करने से मन की मैल करती है और अत्यंत पवित्र प्रफुल्लता आती है।

रामचंद्र शुक्ल – हम निःसंकोच कह सकते हैं कि यह एक कवि ही हिन्दी की एक प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है।

रामचंद्र शुक्ल – तुलसीदास जी अपने ही तक दृष्टि रखने वाले भक्त न थे, संसार को भी दृष्टि फैलाकर देखने वाले भक्त थे। जिस व्यक्त जगत के बीच उन्हें भगवान के रामरुप की कला का दर्शन कराना था, पहले चारों ओर दृष्टि दौङाकर उसके अनेक रूपात्मक स्वरूप को उन्होंने सामने रखा है।

रामचंद्र शुक्ल – शील और शील का, स्नेह और स्नेह का, नीति और नीति का मिलन है। (राम-भरत मिलन)

रामचंद्र शुक्ल – यदि कहीं सौन्दर्य है तो प्रफुल्लता, शक्ति है तो प्रणति, शील है तो हर्ष पुलक, गुण है तो आदर, पाप है तो घृणा, अत्याचार है तो क्रोध, अलौकिकता है तो विस्मय, पाखंड है तो कुढ़न, शोक है तो करुणा, आनंदोत्सव है तो उल्लास, उपकार है तो कृतज्ञता, महत्त्व है तो दीनता, तुलसीदास के हृदय में बिम्ब-प्रतिबिंब भाव से विद्यमान है।

रामचंद्र शुक्ल – अनुप्रास के तो वह बादशाह थे। अनुप्रास किस ढंग से लाना चाहिए, उनसे यह सीखकर यदि बहुत से पिछले फुटकर कवियों ने अपने कवित सवैये लिखे होते तो उनमें भद्दापन और अर्थन्यूनता न आने पाती।

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हजारी प्रसाद द्विवेदी – तुलसीदास को जो अभूतपूर्व सफलता मिली उसका कारण यह था कि वे समन्वय की विशाल बुद्धि लेकर उत्पन्न हुए थे। भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य लेकर सामने आया हो।

हजारी प्रसाद द्विवेदी – तुलसीदास जी की कविता में लोकजीवन को बहुत दूर तक प्रभावित किया है। उत्तर भारत में जन्म से लेकर मरण काल तक के सभी अनुष्ठानों और उत्सवों में तुलसीदास की रामभक्ति का कुछ न कुछ असर जरुर है।

रामनरेश त्रिपाठी – महात्मा गाँधी का आत्मशुद्धि का उपदेश और तुलसीदास का रामचरितमानस दोनों एक ही वस्तु है।

उदयभानु सिंह – विनयपत्रिका उत्तम प्रगीत काव्य का उत्कृष्ट नमूना है।

उदयभानु सिंह – मानस भक्तिजल से लबालब भरा है। पहले ही सोपान के आरंभ से भक्तिरस मिलने लगता है। पाठक ज्यों-ज्यों गहराई में उतरता जाता है त्यों-त्यों भक्तिजल में प्रवेश करता जाता है और सातवें सोपान पर पहुँचकर वह भक्ति रस में पूर्णतः मग्न हो जाता है।

रामविलास शर्मा – भक्ति आंदोलन और तुलसी काव्य का राष्ट्रीय महत्त्व यह है कि उनसे भारतीय जनता की भावात्मक एकता दृढ़ हुई।

रामविलास शर्मा – भक्ति आंदोलन और तुलसी काव्य का अन्यतम सामाजिक महत्त्व यह है कि इनमें देश की कोटि-कोटि जनता की व्यथा, प्रतिरोध-भावना और सुखी जीवन की आकांक्षा व्यक्त हुई है। भारत के नए जागरण का कोई महान कवि भक्ति आंदोलन और तुलसीदास से पराङ मुख नहीं रह सकता।

ग्राउस – महलों और झोपङियों में समान रुप से लोग इसमें रस लेते हैं। वस्तुतः भारतवर्ष के इतिहास में गोस्वामी जी का जो महत्त्वपूर्ण स्थान है, उसकी समानता में कोई आता ही नहीं, उसकी ऊँचाई को कोई छू नहीं पाता।

लल्लन सिंह – तुलसी ने काव्य के संबंध में अपने लिए जो प्रतिमान निर्धारित किए थे, उनमें समाजनिष्ठता सर्वोपरि है।

विश्वनाथ त्रिपाठी – तुलसी की पंक्तियाँ लोगों को बहुत याद है। वे उत्तरी भारत के गाँवों, पुरबों, खेतों, खलिहानों, चरागाहों, चौपालों में दूब, जल, धूल, फसल की भाँति बिखरी हैं।

रामकिंकर उपाध्याय – रामचरितमानस के राम ज्ञानियों के परब्रह्म परमात्मा हैं। भक्तों के सगुण साकार ईश्वर हैं। कर्म मार्ग के अनुयायियों के लिए महान मार्ग दर्शक और दीनों के लिए दीनबंधु हैं। चार बाटों के माध्यम से रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने सारे समाज के व्यक्तियों को आमंत्रण दिया कि वे श्रीराम के चरित्र से अपनी अभीष्ट वस्तु प्राप्त कर लें।

तुलसीदास के काव्य में काव्य-सौंदर्य की भावना कैसे थी ?

तुलसीदास राम के अनन्य भक्त थे तथा उच्च शिक्षा प्राप्त गुणज्ञ पण्डित थे, सन्त थे, महात्मा थे। उन्होंने समाज को गहराई से अध्ययन किया था। एक ओर नाथपंथी योगी और अलख-निरंजन की रट लगाकर उस ब्रह्मा को केवल उस घट में उपस्थिति बताते थे और लोक की तरफ से व्यक्ति को उदासीन बना रहे थे, दूसरी ओर नाना प्रकार के दार्शनिक मत-मतान्तर मनुष्य को केवल बुद्धि जाल हमें उलझाए हुए थे। ऐसी स्थिति में तुलसीदास ने विचारर्पूवक अपना पथ निर्धारित किया था।

उनका काव्य यद्यपि ’स्वान्तःसुखाय’ लिखा गया व्यक्तिगत काव्य है, किन्तु तुलसी की व्यापक समस्त विशेषताओं का आकलन करना अत्यन्त कठिन काम है। कुछ विशेषताओं की निर्देश इस प्रकार किया जा सकता है-

1. भावपक्ष विशेषताएँ

2. कलापक्ष विशेषताएँ

Updated: 08/22/2023 — 8:52 AM

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