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Mahadevi Verma Biography In Hindi |महादेवी वर्मा की जीवनी (1907 -1987

Mahadevi Verma Biography In Hindi |महादेवी वर्मा की जीवनी (1907 -1987)

आज की पोस्ट में हम छायावाद की प्रमुख कवयित्री महादेवी वर्मा(Mahadevi verma) के जीवन परिचय के बारें में जानेंगे ,और इनसे महत्त्वपूर्ण तथ्य जानेंगे।

Table of Contents

              महादेवी वर्मा – Mahadevi Verma

जन्मकाल – 1907 ई.
जन्मस्थान – फर्रुखाबाद (उत्तरप्रदेश)
मृत्युकाल – 1987 ई.
Mahadevi Verma
Mahadevi Verma

महादेवी वर्माMahadevi Verma

प्रमुख रचनाएँ – (क) काव्य संग्रह
नीहार-1930 ई.
रश्मि – 1932 ई.
नीरजा – 1935 ई.
सांध्यगीत -1936 ई.
 दीपशिखा – 1942 ई.
 सप्तपर्णा – 1960 ई.

ट्रिकः नेहा रानी सादी सप्त

प्रसिद्ध गद्य रचनाएँ –

  •  स्मृति की रेखाएँ
  •  पथ के साथी
  •  शृंखला की कङियाँ
  •  अतीत के चलचित्र

कविता संग्रह : Mahadevi Verma

नीरजा1934 ई.
सांध्यगीत1935 ई.
यामा1940 ई.
दीपशिखा1942 ई.
सप्तपर्णा1960 ई.अनूदित
संधिनी

1965 ई.
नीलाम्बरा1983 ई.
आत्मिका1983 ई.
दीपगीत1983 ई.
प्रथम आयाम1984 ई.
अग्निरेखा1990 ई.

(ख) समेकित काव्य संग्रह : Mahadevi Verma

1. यामा – 1940 ई. (इसमें नीहार, रश्मि, नीरजा और सांध्यगीत रचनाओं में संगृहीत सभी गीतों को समेकित रूप में एक जगह संकलित कर दिया गया है।)

पुरस्कार – 1. इस ’यामा’ रचना के लिए इनको 1982 ई. में ’भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ एवं ’मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्राप्त हुआ था।

2.हालाँकि उन्हें ’नीरजा’ रचना के लिए ’सेकसरिया पुरस्कार’ मिला था।

विशेष तथ्य (Mahadevi Verma)

  • महादेवी वर्मा(mahadevi verma) को ‘हिन्दी की विशाल मन्दिर की वीणा पाणी’ कहा जाता है। 
  • ‘इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखी जो लोकोत्तर है। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ है और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना ,यह नहीं कहा जा सकता।’- महादेवी के सन्दर्भ में यह कथन किसका है ?
    ⇒ आचार्य शुक्ल
  •  ये आरंभ में ब्रज भाषा में कविता लिखती थीं,लेकिन बाद में खङी बोली में लिखने लगी एवं जल्दी ही इस क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त कर ली।
  •  इन्होंने ’चाँद’ नामक पत्रिका का संपादन कार्य किया था।
  • हिन्दी लेखकों की सहायतार्थ इन्होंने ’’साहित्यकार संसद’’ नामक एक ट्रस्ट (संस्था) की स्थापना  भी  की थी।
  •  इन्हें ’वेदना की कवयित्री’ एवं ’आधुनिक युग की मीरां’ के नाम से भी पुकारा जाता है।
  •  ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या रही है।
  • भारत सरकार द्वारा इनको ’पद्म भूषण’ से अलंकृत किया गया था।
  • अगर हम  इनके काव्य को पढ़ें तो  काव्य में अलौकिक विरह की प्रधानता देखी जाती है
  •  इनका ’सप्तपर्णा’ काव्य संग्रह वैदिक संस्कृत के विविध काव्यांशों पर आधारित माना जाता है। इसमें ऋग्वेद के मंत्रों का हिन्दी काव्यानुवाद संकलित है
  • महादेवी के भाव पक्ष के गम्भीर्य व विचार पक्ष के औदात्य की भाँति उनके काव्य का शैली पक्ष भी अत्यन्त प्रौढ़ व सशक्त है।
  •  आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है – ’’छायावादी कहे जाने वाले कवियों में महादेवीजी ही रहस्यवाद के भीतर रही हैं।’’
  • इनके द्वारा रचित गीतों (कविताओं) की कुल संख्या 236 मानी जाती है।

Mahadevi Verma ka Jeevan Parichay

  •  इनको धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान अपनी धर्मपरायणा माता ’हेमरानी देवी’ से प्राप्त हुआ था।
  • ग्यारह वर्ष की अल्पायु में इनका विवाह डाॅ. रूपनारायण वर्मा के साथ हुआ थाा।
  •  इन्होंने अपनी पहली कविता मात्र सात वर्ष की अल्पायु में लिख डाली थी।
  • विरह की प्रांजल अनुभूति, परिष्कृत चिंतन, काव्योचित गंभीरता और सौन्दर्यशिल्प इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ मानी जा सकती है।

महादेवी जी ( Mahadevi Verma) के बारे में महत्त्वपूर्ण कथन-

बच्चन सिंह के अनुसार,‘ महादेवी के विषय का विस्तार सीमीत है।’

डाॅ.नगेन्द्र के अनुसार,‘ महादेवी के काव्य में हमें छायावाद का शुद्ध और अमिश्रित रूप मिलता है। इन्होंने छायावाद को पढा ही नहीं ,अनुभव किया है।’

डाॅ. नगेन्द्र के अनुसार – सामयिक परिस्थितियों के अनुरोध कर सकने के कारण महादेवी वांछित शक्ति का संचय नहीं कर पाई फलतः एकान्त अन्र्तमुखी हो गयी इस प्रकार उनकी कविताओं के आर्विभाव से मानसिक दमन और अतृप्तीयों का बहुत बङा योग है।

सुधांशु ने लिखा है – ’’महादेवी वर्मा ने अपनी सारी मनोभावनाओं को एक अप्राप्त आराध्य के उपलक्ष्य से अभिव्यक्त करने की चेष्टा की है।’’

बच्चन सिंह के अनुसार – ’’महादेवी के गीत अपनी समस्त कलात्मकता के बावजूद ऊब पैदा करते है।’

रामविलास शर्मा के अनुसार – ’’महादेवी और उनकी कविता का परिचय ’नीर भरी दुख की बदली’ या ’एकाकिनी बरसात’ कहकर नहीं दिया जा सकती उन्हीं के शब्दों में उनका परिचय देना हो तो मैं यह पंक्ति उद्धत करूंगा।
’’रात के उर में दिवस की चाह का शेर हूँ।’’

शान्तिप्रिय द्विवेदी – ’’कविता मैं महादेवी आज भी वही है जहाँ कल थी किन्तु पन्त जहाँ कल थे वहाँ से आज आगे की ओर बढ़ गये है आज उन्होंने युगवाणी दी है, समाजवाद की बाइबिल, महादेवी ने छायावाद की गीता दी है – यामा।

महादेवी वर्मा(Mahadevi verma in Hindi) की प्रमुख पंक्तियाँ

मैं नीर भरी दुख की बदली
परिचय इतना इतिहास यही
उमङी कल थी, मिट आज चली

पर शेष नहीं होगी यह मेरे प्राणों की क्रीङा।
तुमको पीङा में ढूँढ़ा तुममें ढूँढ़ती पीङा।।

जो तुम आ जाते एक बार।
कितनी करुणा कितने संदेश, पथ में बिछ जाते बन पराग

मधुर मधुर मेरे दीपक जल
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर

मिलन का नाम मत लो मैं विरह में चिर हूँ

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ।
दूर हूँ तुमसे अखण्ड सुहागिनी भी हूँ।।

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